हनुमान जी का रामभक्त रूप और बलबीरा रूप तो जग प्रसिद्ध हैं।मन में आया की उनका संगीतराज रूप भी सबको बताया जाए, उन्ही की आज्ञा और इच्छा से, उन्हीं के सुझाए शब्दों में भगवन तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा को परिवर्तित कर हनुमान गीतसा को आपके सामने प्रस्तुत कर रही हूं। हनुमान भगवान और संगीत के प्रति शुद्ध प्रेम और शुद्ध भाव के कारण यह साहस कर रही हूं। प्रस्तुत हनुमान गीतसा को पढ़ (जिसे मैं गीतसा कह रही हूं) के गुण दोषों को जरूर मुझे कहे। मैं आभारी रहूंगी। यह प्रयत्न संगीत और संगीत साधकों के प्रति प्रेम के कारण हैं,इसलिए आपका आशीर्वाद सदा रखे। हनुमान अर्पणम अस्तु।
जय हनुमान गान को सागर ।
जय स्वरधीश लय को उजागर ।।
रामदूत अतुलित स्वरधामा ।
अंजनी पुत्र मंत्र तेरो रामा ।।
महाबीर विक्रम स्वरसंगी ।
कुगती निवार सुगती के संगी ।।
कंचन सुरन स्वरराज सुबेसा ।
कानन कुंडल छंदको जैसा ।।
हाथ बीन औ मृदंग बिराजै ।
कांधे तुंब बीन को साजै ।।
संकर सुवन नादको स्पंदन ।
तेजप्रताप रूदध्वनि को वंदन ।।
विद्यावान गुणी गान आतुर ।
शब्दराम को जपैं ओ चातुर ।।
प्रभुचारित्र गावे हृदि बसिया ।
मेघराग के गुण सब बखिया ।।
सूक्ष्म रूप धरि लय को प्रवाहा ।
बिकट रूप धरि भुवन गर्जावा ।।
सुर रूप धरि असुर संहारे ।
विधिवत तुम सब बाज बजावें ।।
लाय सजीवन लय संभारे ।
श्री को रूप लछन गुण गारे ।।
सरसुती किन्ही बहुत बढ़ाई ।
ताहि संगीत तुम आ जग लाई ।।
सहस श्रुतिन राम जस गावैं ।
प्रेम भाव को राग सुनावैं ।।
सुरसाधक ब्रह्मादि मुनीसा ।
सुरब्रह्म तुम्ही जपे अहिसा ।।
मतंग भरत कल्लीनाथ जहां ते ।
राधा गोबिंद कही सके कहां ते ।।
तुम उपकार वादकही कीन्हा ।
राग बताये राजपद दीन्हा ।।
तुम्हरो मंत्र वेदही बखाना ।
सुरको ईश्वर तुम्ही को जाना ।।
चतुस्त्रिंशदुत्तरद्विशत पर सा नु ।
दुगुन आंदोलन तार सा को जानु ।।
शब्दब्रह्म लिए मुख माही ।
सुरधि लांघी गये अचरज नाही ।।
दुर्गम राग जगत के जे ते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।।
साम दुआरे तुम रखवारे ।
स्वर न साध्य बिनु तुम्हारे ।।
सब सुर लये तुम्हारी सरना ।
तुम सुरेश्वर काहू को डरना।।
शास्त्रनु गान सिखावो आपै ।
तीनों लोक नाद को पावै ।।
असुर विसुर निकट नहीं आवै ।
हनुमत को जो मंत्र सुनावें ।।
नासे रोग हरे सब पीरा ।
गावे दीपक राग धर धीरा ।।
अनहद को हनुमान दिखावै ।
भजमन शरण नाद जो जावै ।।
सब पर ॐ गीत को राजा ।
तुम ओंकार,जोगीकी जात्रा ।।
जो मनोरथ जैसों मन धारे ।
तैसो सुर तोहि मनु पावैं ।।
चारों खंड तीनताल तुम्हारा ।
परसिद्ध प्रभंजन हैं लयधारा ।।
अष्टसिद्धि नवनिधि के दाता ।
स्वर योगी के तुम परित्राता ।।
शब्द रसायन तुम्हारे पासा ।
शब्दजोगी की तुम्ही आसा ।।
तुम्हरे भजन नादब्रह्म पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै।।
अंतकाल स्वरगीत पुर जाई ।
जहां जन्म हरिदास कहाई ।।
नादसरूप चित्त मा धरही ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ।।
संवद होय मिटे सब पीरा ।
स्वर सब फलै सिद्ध नरविरा ।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु साधक के साईं ।।
जो सत बार तान रट कोई ।
उत्तम गान महा सुख होई ।।
जो यह गाये हनुमान गीतसा ।
सुर ही होय सुरसती सुरहीसा ।।
राधिकदासी सदा हरि चेरी ।
लीजे शरण भक्तन हूं तेरी ।।
जय हनुमान।।।।।?
©️ डॉ. राधिका वीणासाधिका